महाभारत युद्ध - एक ऐसा योद्धा जो युद्ध के परिणाम पहले से जानता था श्री कृष्ण की तरह.

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महाभारत युद्ध - एक ऐसा योद्धा जो युद्ध के परिणाम पहले से जानता था श्री कृष्ण की तरह.



 महाभारत का युद्ध आज से लगभग 5112 वर्ष पूर्व कौरवों और पांडवो की विशाल सेनाओं के बीच लड़ा गया  यह युद्ध कुरुक्षेत्र जो की हरियाणा में है की पावन धरती पर लड़ा गया ,इस कारण कुरुक्षेत्र को धर्मनगरी भी कहा जाता है ! माना जाता है किइस युद्ध में 50 लाख योद्धाओं ने भाग लिया था। 

महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला था इस युद्ध में 18 अक्षोहीणी सेना थी जिसमें 11 अक्षोहीणी सेना कौरवों की तरफ से लड़ी और 7 अक्षोहीणी सेना पांडवो की तरफ से लड़ी थी ! महाभारत के युद्ध के अंत में कौरवों की तरफ  से 3 और पांडवो की तरफ से 15 यानि कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे !

महाभारत की महागाथा में हजारों ऐसी कथायें है जो आप को आश्चर्य में डाल सकती है ! भगवान श्री कृष्ण सोलह कलाओं में माहिर थे ,वे जितने मायावी थे उतने मानवीय भी थे !भगवान श्री कृष्ण त्रिकाल दर्शी थे इस लिये वो युद्ध के परिणाम को पहले से ही जानते थे !
लेकिन बहुत कम लोग ये जानते है की महाभारत के युद्ध में भगवान श्री कृष्ण के अलावा एक और योद्धा थे जो त्रिकाल दर्शी थे और वो भी जानते थे की इस युद्ध में कौन किसको मारेगा और कौन विजयी होगा ,लेकिन भगवान कृष्ण ने उन्हें श्राप दिया था की इस बारे में अगर वो किसी को भी बतायेगे तो उनकी मृत्यु हो जाएगी ! 
महाभारत में पाण्डु के पाँच पुत्र थे ,युधिष्ठिर ,भीम ,अर्जुन ,नकुल और सहदेव ! युधिस्टर ,भीम और अर्जुन कुन्ती के पुत्र थे और नकुल,सहदेव माद्री - अश्‍विन कुमार के पुत्र थे ! महाभारत युद्ध में भगवान श्री कृष्ण के अलावा जो त्रिकाल दर्शी योद्धा थे वो पाण्डु पुत्र सहदेव थे,वे भविष्य में होने वाली घटना को पहले से ही जान लेते थे !अब आप सोच रहे होंगे की उनको ये शक्ति कहा से मिली, तो आइये जानते है की सहदेव कैसे बने त्रिकाल दर्शी !

पांचो पांडवो के पिता महाराज पाण्डु बहुत ही ज्ञानी हुआ करते थे ! पाण्डु की अंतिम इच्छा थी की उनके पांचो पुत्र उनके मरने के बाद उनके मृत शरीर को खाएं ,ताकि जो ज्ञान पाण्डु में है वो उनके पुत्रों में चला जाए !लेकिन पिता की मृत्यु के बाद उनके पुत्रों से ये हो नहीं पाया केवल सहदेव ने ही हिम्मत दिखाकर पिता की इच्छा का पालन किया !उन्होंने अपने पिता के मस्तिष्क के तीन हिस्से खाएं ,पहले हिस्से को खाने से उनको इतिहास का ज्ञान हुआ और दूसरे हिस्से को खाने से उनको वर्तमान का ज्ञान हुआ और तीसरे हिस्से को खाने से उनको भविष्य दिखने लगा ! इस तरह से सहदेव त्रिकाल दर्शी बने ! 
  

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