केदारनाथ एक रहस्य -जाने केदारनाथ धाम के बारे में (Kedarnath)
Kedarnath Temple History In Hindi
भारत में अनेको देवी देवताओ की पूजा की जाती है हिन्दू धर्म में पुराणों के अनुसार भगवान शिव ने प्रकर्ति के कल्याण के लिए 12 जगहों पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए उन 12 शिवलिंगो को ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है जिन में एक ज्योतिर्लिंग केदारनाथ भी है यह चार धाम एवं पंच केदारों में से एक है पंच केदारों में केदारनाथ ,रुदरनाथ ,कल्पेश्वर ,मदवेश्वर और तुंगनाथ शामिल है केदारनाथ भारत के उत्तराखंड राज्य के सोनप्रयाग जिले में हिमालय की केदार घाटी में स्थित है !
केदारनाथ मन्दिर के बारे में जाने :-
केदारनाथ समुन्दर तल से लगभग 3500 मीटर की ऊंचाई पर है केदारनाथ मन्दिर तीनों तरफ से पहाड़ों से घिरा हुआ है एक तरफ लगभग 22000 फ़ीट ऊंचा केदार पर्वत और दूसरी तरफ 21000 फ़ीट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ 22000 फ़ीट ऊंचा भरतकुंड न सिर्फ पर्वत बल्कि पांच नदियों का भी संगम यहाँ माना जाता है जिन में मन्दाकनी ,मधुगंगा ,चिरगंगा ,सरस्वती और स्वर्णगौरी शामिल है इन नदियों में कुछ को काल्पनिक माना जाता है क्यों की यहाँ मन्दाकनी ही साफ तौर पर दिखाई देती है !
केदारनाथ मन्दिर 85 फ़ीट ऊंचा और 187 फ़ीट चौड़ा है और इसकी दीवारें 12 फ़ीट मोटी है यह मन्दिर एक 6 फ़ीट ऊंचे चकोर चूबतरे पर बनाया गया है लेकिन यह भी हैरान कर देने वाली बात है की इतने भारी पत्थर को इतनी ऊंचाई पर कैसे लाया और तराशा गया होगा !माना जाता है की पत्थरों को इंटरलॉकिंग तक्नीक से जोड़ा गया होगा मन्दिर के बाहर नंदी बैल वाहन के रूप में विराजमान है और मन्दिहै र के गरबगरह के चारों तरफ पर्दिक्षणा पथ है
केदारनाथ मन्दिर का निर्माण
केदारनाथ मन्दिर के निर्माण को लेकर कई बाते कही जाती है इसको 1000 वर्षो पुराना माना जाता है यह भी माना जाता है कि इस मन्दिर का निर्माण पाण्डवों के वंशज जन्मजय दवारा करवाया गया था ! और एक मान्यता के अनुसार मन्दिर का निर्माण जगत गुरु आदिशंकराचार्य ने 8वी शताब्दी में करवाया था 32 वर्ष की आयु में सन 820 में केदारनाथ के पास ही उनकी मृत्यु हुई मन्दिर के पिछले भाग में जगत गुरु आदिशंकराचार्य की समाधी भी है !
केदारनाथ मन्दिर को लेकर दो कथाएँ प्रचलित है
पहली कहानी के अनुसार केदार के शिखर पर भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ऋषि यहाँ तपस्या करते थे उनकी तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने उन्हें यहाँ दर्शन दिए और उनकी प्रार्थना के अनुसार ज्योतिर्लिंग के रूप मे यहाँ सदा वास करने का वचन दिया !
दुसरी कहानी के अनुसार महाभारत युद्ध के बाद पांडवो पर अपने परिवार की हत्या का पाप लगा जिसके लिए पांडव इस पाप से मुक्त होना चाहते थे और शिवजी का आशीर्वाद पाना चाहते थे इसके लिए पांडव काशी गए लेकिन भगवान शिव वहा नहीं मिले पांडव भगवान शिव को ढूंढ़ते-ढूंढ़ते हिमालय तक आ पहुंचे लेकिन भगवान शिव पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे इसलिए भगवान शिव वहा से अंतरध्यान हुई और केदारनाथ जा बसे और दूसरी तरफ पांडव भी अपनी लगन के पके थे और वो भी भगवान शिव का पीछा करते - करते केदारनाथ आ पहुचे तभी भगवान शिव ने बैल का रूप धारण किया और पशुओ के झुंड में जा मिले लेकिन पांडवों को इस बात का सन्देह हो गया था तभी भीम ने अपना विशालतम रूप धारण करके दोनों पहाड़ों पर अपने पैर फ़ला दिए यह सब देखकर सभी गाय बैल तो भीम के पैरों के निचे से निकल गए लेकिन भगवान शिव यह करने को तैयार नहीं हुए भीम ने अपने बल से बैल को पकड़ा लेकिन बैल धरती में समाने लगा तब भीम ने बैल की पीठ वाला भाग पकड़ लिया भगवान शंकर पांडवों की भक्ति और इच्छा शक्ति को देख कर बहुत खुश हुए और उन्होंने उसी समय दर्शन देकर पांडवो को पाप से मुक्त कर दिया उसी समय से भगवान शिव बैल की पीठ की आकृति के रूप में केदारनाथ में पूजे जाते है !ऐसा भी माना जाता है कि जब भगवान शिव बैल के रूप में अंतरध्यान हुए तो उनके धड़ के ऊपर का भाग काठमांडू में प्रकट हुआ अब वहाँ पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मन्दिर है शिव की भुजाएं तुम्बिनाथ में मुख रुदरनाथ में नाभि मध्यस्वर और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुई इसलिए इन चार स्थानों की वजह से केदारनाथ को पंच केदारनाथ भी कहा जाता है !
श्री केदारनाथ मन्दिर पर उपस्थित दिव्य पंच कलश भीतर से मोटी ताँबे की धातु और बाहर से सोने की धातु से बनाया गया था जोकि वर्तमान समय में उपस्थित नहीं है क्योंकि कुछ वर्ष पूर्व वह कलश मनुष्य के लालच की भेंट चढ़ गया और वर्तमान में उस कलश के स्थान पर जावलु की श्रेणी का कलश स्थापित है मन्दिर के परागण में द्रोपदी सहित पांच पांडवो की विशाल मूर्तियाँ है और मन्दिर के गर्भग्रह में नुकीली चटान भगवान शिव के सदाशिव रूप में पूजी जाती है !
केदारनाथ मन्दिर दर्शन करने का सही समय केदारनाथ मन्दिर के कपाट मेष सक्रांति के 15 दिन पहले खुलते है और अगहन सक्रांति के निकट वलराज की रात को यहाँ पूजा की जाती है भईया दूज के दिन सुबह 4 बजे पूजा करके कपाट बंद कऱ दिए जाते है कपाट बन्द होने के बाद केदारनाथ की पंचमुखी प्रतिमा को ओखी मठ लाया जाता है इस प्रतिमा की पूजा यहाँ रावल जी करते है !
केदारनाथ के पुजारी मैसूर के जंगम ब्रामण ही होते है केदारनाथ जी का मन्दिर आम जन के लिए सुबह 6 बजे खुलता है और दोपहर 3 से 5 यहाँ विशेष पूजा होती है और उसके बाद विश्राम के लिए मन्दिर बन्द कर दिया जाता है और फिर शाम 5 बजे भक्तों के दर्शन के लिए यह मन्दिर खोला जाता है भगवान शिवजी की प्रतिमा का विधिवत श्रींगार करने के बाद 7:30 से 8:30 बजे तक यहां हर रोज आरती की जाती है और रात 8:30 बजे श्रीकेदारनाथ मन्दिर को बन्द कर दिया जाता है
कैसे जाएं केदारनाथ
भारत के उत्तराखण्ड राज्य के सोनप्रयाग जिले में स्थित केदारनाथ हिन्दुओं के चार धामों में से एक है केदारनाथ जाने के लिए आप दिल्ली से ऋषिकेष और फिर ऋषिकेष से श्रीनगर ,देवप्रयाग ,रुद्रप्रयाग होते हुए सोनप्रयाग पहुंचे और सोनप्रयाग में अपनी गाड़ी को पार्क कर दे क्योंकि यहाँ से आगे आप अपनी गाड़ी से नहीं जा सकते सोनप्रयाग से 5 किलोमीटर आगे गौरीकुंड है सोनप्रयाग से गौरीकुंड जाने के लिए आप घोड़ा या टैक्सी से जा सकते है गौरीकुंड में एक गरम पानी का कुण्ड भी है जहाँ आप स्नान भी कर सकते है और फिर गौरीकुंड से शुरू होती है केदारनाथ की 16 किलोमीटर की पैदल यात्रा आप इस यात्रा में घोड़ा भी कर सकते है क्योंकि यात्रा लम्बी है आप को रास्ते में जगह - जगह पर खाने पिने की दुकानें मिलती है !
Devpryag |
अगर आप हेलिकॉप्टर से यात्रा करना चाहते है तो आप फाटा से केदारनाथ के लिए हेलिकॉप्टर बुक कर सकते है एक बात ध्यान रहे टिकट बुकिंग पहले कर ले वरना आप को टिकट मिलने में परेशानी हो सकती है ऋषिकेष से केदारनाथ के रास्ते में ऋषिकेष से लगभग 196 किलोमीटर की दूरी पर फाटा शहर है जहाँ से आप को हेलिकॉप्टर मिल जाएगा !
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