नाहरगढ़ किले का रहस्य-नौ महलों का किला
नाहरगढ़ किले का इतिहास
जयपुर शहर से लगभग 12 किलोमीटर की दुरी पर अरावली पर्वतमाला की पहाड़ी पर स्थित नाहरगढ़ किले का निर्माण 1734 ई में सवाई राम सिंह जी ने आरंभ करवाया था और किले का निर्माण सवाई माधव सिंह जी के समय पूरा हुआ किले में राजा ने अपनी नौ रानियों के लिए नौ अलग - अलग महलों का निर्माण करवाया इस किले की यह भी खास बात है की सभी महलों को बिल्कुल एक जैसा बनवाया गया है ताकि रानियों में आपस में कोई लड़ाई ना हो यहाँ बने नौ रानियों के महलों के अलावा एक महल राजा का भी है इस किले का मुख्य दवार माधवेंद्र भवन के नाम से जाना जाता है इस किले की छत से आप पुरे जयपुर शहर का बहुत ही आकर्ष्क नजारा देख सकते है किले में आप 10 बजे तक रुक सकते है और नाईट व्यू का आनन्द ले सकते है !
नाहरगढ़ किले के नाम का रहस्य
जब इस किले का निर्माण शरू किया गया तब इस किले को सुदर्शन गढ़ के नाम से जाना जाता था तो आइये जानते है क्यों इस किले का नाम सुदर्शन गढ़ से बदल कर नाहरगढ़ किया गया क्योंकि जब इस किले का निर्माण शरू किया गया उस समय जो भी काम कारीगर पूरे दिन में करके जाते थे वो सारा निर्माण कार्य अगले दिन सुबह टूटा हुआ मिलता था यह बात किसी को भी समझ नहीं आ रही थी की ऐसा आखिर क्यों हो रहा है
फिर किसी के समझाने पर एक तांत्रिक को बुलाया गया और यह सब होने का क्या कारण है इसके बारे में पुछा तब उसने बताया की यहाँ एक नाहर सिंह नाम के आदमी की आत्मा है और वह नहीं चाहती की इस किले का नाम सुदर्शन गढ़ हो बल्कि वह चाहती है की इस किले का नाम उसके नाम पर हो इसलिए बाद में इस किले का नाम सुदर्शन गढ़ से बदल कर नाहरगढ़ रखा गया उसके बाद ही इस किले का निर्माण कार्य सम्भव हो पाया और साथ ही यही किले में नाहर सिंह के नाम का मन्दिर भी बनवाया गया जिसे आप आज भी यहाँ देख सकते है !
महलों के नाम इस प्रकार है
जैसा की अब आप जान गए है कि इस किले में एक जैसे नौ महल है और एक मुख्य महल राजा माधव सिंह जी का है राजा माधव सिंह जी के महल के बिल्कुल सामने जो महल है उसमें सभी रानियों में से जो पटरानी होती थी उसको दिया जाता था महलों के नाम इस प्रकार है चाँद प्रकाश, आनन्द प्रकाश ,लक्ष्मी प्रकाश ,ललित प्रकाश ,सुरज प्रकाश ,जवाहर प्रकाश ,खुशहाल प्रकाश। सभी महलों में सभी सुविधा है जैसे रानियों के टॉयलेट ,रसोई में धुँआ बाहर निकलने की सुविधा दासियों के लिए अलग से कमरे और टॉयलेट ये सब चीज़ आज भी आप यहाँ देख सकते है !यह महल दो मंजिला है सर्दियों में निचे वाली मंजिल का और गर्मियों में ऊपर वाली मंजिल का इस्तेमाल किया जाता था !
इस महल की दीवारों के भी कान है
दीवारों के कान होते है यह कहावत तो आप ने सुनी होगी इस किले में बने महलों में आप यह देख सकते है क्यों चौक गए ना ऐसा कैसे हो सकता है तो आईये जानते है जब रानियाँ आराम करती थी तो दासियाँ उनकी देखभाल के लिए रात भर पहरा देती थी पहरा देते समय दासियों को नींद ना आ जाए इसको ध्यान में रखते हुए महलों की दीवारों को ऐसे बनवाया गया था की दासी आपस में बात भी करती रहे और उनके बात करने से रानी की नींद में भी कोई विघ्न ना हो ये दीवारें आज भी आप इस महल में देख सकते है !
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राजा कैसे एक रानी के पास जाते थे कि बाकि रानियों को पता ना चले
इस महल की यह एक और खास बात है की राजा किसी भी एक रानी के पास चले जाते थे और बाकि रानियों को इस बात पता भी नहीं चलता था की राजा किस रानी के पास है इसके लिए महलों को इस तरीके से बनवाया गया था कि एक रास्ता राजा के महल से सभी रानियों के महल में खुलता था जिसे किंग कॉरिडोर के नाम से जाना जाता है और दूसरा रास्ता क्वीन कॉरिडोर के नाम से जाना जाता है इस रास्ते से सभी रानियाँ बड़ी आसानी से एक दूसरी रानी के महल में आ जा सकती है आज भी ये कॉरिडोर इस किले में आप देख सकते है !
बावड़ियाँ
नाहरगढ़ किले में तीन बावड़ी है जैसा की आप जानते है कि किला पहाड़ी की चोटी पर बना है तो पानी का मुख्य स्त्रोत वर्षा का पानी ही था इसलिए पानी को बावड़ियों में इकक्ठा किया जाता था पहाड़ी और किले का पानी किले में बनी नालियों के माध्यम से पानी छोटी छोटी हौदियो में से गुजरता हुआ बावड़ी में जाता था इससे कचरा रुक जाता था और साफ़ पानी आगे जाता था बावड़ी के पास एक विशिष्ट प्रकार का जल शोधन तन्त्र निर्मित है जो वर्षा के पानी को कई चरणों में शुद्ध कर बावड़ी में पहुंचाता था !
किले में ये कुछ और आकर्षण भी है
वैक्स म्यूजियम
पांडव रेस्टोरेंट
सन सेट पॉइन्ट
शीश महल
नाहरगढ़ किले को देखने का समय
नाहरगढ़ किला सुबह 10 बजे खुलता है और 5:30 बजे बंद हो जाता है
प्रवेश शुल्क
भारतीए यात्री 50/-
भारतीए छात्र 5/-
विदेशी यात्री 200/-
विदेशी छात्र 25/-
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